Sunday, October 9, 2011

इस्लाम सारी मानव जाति के लिए संपूर्ण मार्गदर्शन है

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जाने क्या मनोग्रंथि है कि इस्लाम के खिलाफ कोई न कोई लिखता ही रहता है चाहे उसकी बात कितनी ही बेबुनियाद क्यों न हो ?
भाई साहब कह रहे कि इस्लाम के प्रचारक अक्सर यह दावा करते हैं कि इस्लाम को मानने वाले सभी मुसलमान एक हैं।
इस भूमिका के बाद उन्होंने जितने भी सवाल किए हैं उन सबकी हैसियत कुछ भी नहीं है क्योंकि उन्होंने इस्लाम के प्रचारकों की तरफ से एक ऐसा दावा पेश कर दिया है जो कि इस्लाम के प्रचारक कभी करते ही नहीं हैं।
उनकी भूमिका की बुनियाद ही झूठ पर है।
तपन कुमार जी किसी वेबसाइट या किसी पत्र-पत्रिका में किसी इस्लामी प्रचारक के दावे का उद्धरण देकर अपनी बात को सिद्ध तो करते कि यह बात यहां कही गई है।
इस्लाम और मुसलमानों को समझने में यही गलती आम तौर पर की जाती है।
किसी भी धर्म-मत और समुदाय को समझने के लिए आपको उनके मूल स्रोत को जानना लाजिमी है ताकि यह जाना जा सके कि वे मूल स्रोत किस काम को सही और किस काम को गलत ठहरा रहे हैं ?
इस्लाम धर्म कहता है कि दंड का अधिकार केवल राज्य और अदालतों को है जो कि नियमानुसार दिया जाए। इसके अलावा किसी आदमी को कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी की जान ले, यहां तक कि कोई आदमी अपनी पत्नी या अपनी औलाद के गाल पर थप्पड मारने का भी अधिकार नहीं रखता है। यही बात शिया धर्मगुरू बताते हैं और यही बात सुन्नी धर्मगुरू बताते हैं, दोनों ही मत के सारे आलिम इस बात पर एक मत हैं। इनमें कोई भी आलिम एक दूसरे को मारने या सताने की बात कहीं भी नहीं कहता और अगर लोग उनकी बात को मान लें तो कहीं भी कोई दंगा फसाद ही न हो।
धर्म पर चलने के लिए ज्ञान भी चाहिए और संयम भी।
ज्ञान इसलिए ताकि यह पता हो जाए कि हमें किन सिद्धांतों का पालन करना है और संयम इसलिए कि बहुत सी नापसंद बातों को नजरअंदाज करना पडता है, बहुत से कष्ट झेलकर भी क्षमा करना पडता है, तब जाकर जीवन और समाज में शांति प्राप्त होती है।
जो लोग धर्म का सही ज्ञान नहीं रखते और न ही उन्होंने अपने अंदर संयम का गुण विकसित किया है, वे जो कुछ करते हैं, धर्म से हटकर करते हैं। अगर वे धर्म के नियम का पालन करते तो उनमें वही एकता होती जिसकी शिक्षा इस्लाम देता है।

इस्लाम एकता की शिक्षा देता है, वह कहता है कि अलग अलग चीजों के मालिक अलग अलग देवी-देवता नहीं हैं बल्कि सबका मालिक एक ही है। तुम सब उसके बंदे हो, उसके बंदे बनकर रहो, उसका हुक्म मानो, भले काम करो, बुरे कामों से बचो, दूसरों के साथ वही व्यवहार करो जो कि तुम अपने लिए पसंद करते हो।
तुम कुछ भी करने के लिए आजाद नहीं हो, जो कुछ तुम करते हो, ईश्वर उसका साक्षी है और हर चीज का रिकॉर्ड उसके फरिश्ते भी अंकित कर रहे हैं और जिन लोगों के साथ तुम बुरा या भला काम कर रहे हैं वे भी तुम्हारे कामों के गवाह हैं।
मौत तुम्हारे जीवन का अंत नहीं है बल्कि मौत के बाद भी जीवन है और जैसा तुम यहां करोगे उसका फल तुम वहां अवश्य ही भरोगे। किसी की सिफारिश या माल-दौलत या उसकी ऊंची जाति उसके कुछ काम नहीं आएगी। जो भला आदमी होगा, चाहे वह मर्द हो या औरत, चाहे उसका कुल-गोत्र और उसका देश-भाषा और उसकी संस्कृति कुछ भी हो, वह जन्नत में जाएगा जिसे स्वर्ग और हैवन भी कहा जाता है और जो दुष्ट पापी और अन्यायी होगा वह जहन्नम में जाएगा, जिसे नर्क और हेल भी कहते हैं। जो भी व्यक्ति या समुदाय इन बातों को भूल कर जिएगा, वह यहां भी कभी शांति नहीं पा सकता। 

इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है और न ही इसके मौलिक सिद्धांत नए हैं। ईश्वर के एक होने और उसके द्वारा मानव जाति को उसके भले-बुरे कर्मों का फल देने की बात सदा से चली आई है।
और यह बात भी सदा से ही चली आ रही है कि अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए आदमी धर्म के इन नियमों को भुलाता भी आ रहा है। वह खुद को धर्म के अनुसार नहीं बदलता बल्कि धर्म को अपनी इच्छा और अपनी वासना के अनुसार बदल लेता है। अपने लालच को पूरा करने के लिए वह झगडे खडा करता है और अपनी राजनीति चमकाने के लिए वह कभी जाति और कभी भाषा और कभी इलाके को बुनियाद बना लेता है और कभी अपनी मान्यता और अपनी परंपराओं की आड ले लेता है।

धर्म को जानने वाले शिया और धर्म को जानने वाले सुन्नी कभी कहीं भी नहीं लडते।
लडते वही हैं जो कि धर्म को नहीं बल्कि अपने लालच को जानते हैं। लालच बीच में आ जाए तो भाई भाई को मार डालता है। महाभारत का युद्ध इसका साक्षी है, जिसमें 1 अरब 88 करोड़ लोग हाथी घोडों समेत मारे जाने बताए जाते हैं।
इस्लाम की शिक्षा आम होने के बाद अब इतनी बड़ी तादाद में मारे जाने की घटनाएं बंद हो गई हैं।
यह एक बड़ी उपलब्धि है और सभी लोग उसके विधान को मान लें तो हत्या, आत्महत्या और आतंकवाद का सिलसिला बिल्कुल बंद हो जाएगा।
इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है बल्कि सनातन है अर्थात सदा से चला आ रहा है।
ईश्वर सौ-पचास नहीं हैं और न ही उसके धर्म सौ-पचास हैं।
ईश्वर सदा से एक है और उसका धर्म भी सदा से एक ही है।
हिंदू भाई उसे सनातन धर्म कहते हैं और मुसलमान उसे इस्लाम कहते हैं।
दोनों नाम एक ही धर्म के हैं।
समय समय पर अपनी ओर से बढ़ा ली गई बातों को हटाकर जब धर्म मौलिक सिद्धांतों को देखा जाता है तो वे एक ही मिलते हैं और यही बात है कि न सिर्फ धर्म को जानने वाले शिया-सुन्नी आपस में नहीं लड़ते बल्कि धर्म को तत्वतः जानने वाले हिंदू भी किसी से नहीं लड़ते ।
हिंदुओं में भी वही लड़ते हैं जो कि धर्म को नहीं जानते।

भला काम करना धर्म है और बुरा काम करना अधर्म है।
इस बात को हरेक धार्मिक आदमी जानता है और अपनी ताकत के मुताबिक वह भले काम करता भी है। आज जमीन पर जितनी भी शांति है वह धर्म का पालन करने वाले इन लोगों की वजह से ही तो है और इस्लाम का तो धात्वर्थ ही शांति है।
सनातन धर्म उर्फ़  इस्लाम अपनी तरह का अकेला धर्म है क्योंकि 
  • यह ईश्वरीय है और इसके अलावा जितने भी मत हैं वे दार्शनिकों के मन-मस्तिष्क की उपज हैं जो कि समय गुजरने के साथ ही अव्यवहारिक हो चुके हैं।
  • जिन लोगों ने सनातन धर्म या इस्लाम में अपनी ओर से कुछ परंपराएं बढ़ा ली थीं वे भी आज व्यवहारिक नहीं रह गई हैं जबकि जो नियम ईश्वर ने दिए थे, वे आज भी प्रासंगिक हैं।
इस्लाम किसी और मत की तरह कैसे हो सकता है ?
  • इस्लाम ब्याज लेना हराम-वर्जित घोषित करता है और समृद्ध आदमी के लिए अपने माल में से 2.5 प्रतिशत माल जरूरतमंदों को जकात के रूप में देना अनिवार्य घोषित करता है।
  • इसके अलावा सदका और फ़ितरा अलग से देने के लिए कहता है।
  • इस्लाम कहता है कि जिस आदमी की शरारत से उसके पडौसी सुरक्षित न हों, वह आदमी ईमान वाला नहीं है।
  • जो आदमी खुद पेट भरकर खाए और उसका पडोसी भूखा हो तो वह आदमी ईमान वाला नहीं है।
  • जो आदमी झूठ बोले और धोखा दे वह आदमी भी ईमान वाला नहीं है।
  • ईमान वाला आदमी वह है जो कि उस मालिक के ठहराए हुए जायज को जायज और नाजायज को नाजायज मानता है और सबसे बेहतर ईमान वाला वह है जो अपने माता-पिता, अपनी पत्नी-बच्चों और अपने पडोसियों के साथ भला बर्ताव करने वाला है।
  • जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी अहंकार है, वह जन्नत में नहीं जाएगा।
  • जो चोरी, डाके, हत्या, नशा, व्यभिचार और मिलावट करता है और बिना तौबा किए और बिना खुद को सुधारे मर गया तो उसका ठिकाना जहन्नम है। उसका इस्लाम का दावा उसे जहन्नम में जाने से बचा न पाएगा। 
  • केवल इस्लाम ही तो है जो विधवा को पुनर्विवाह की अनुमति देता है। 
  • केवल इस्लाम ही तो है कि जो कहता है कन्या पक्ष वर पक्ष को कोई धनादि देने के लिए बाध्य नहीं है लेकिन वर पक्ष निकाह के समय लडकी मेहर देगा।
  • औरत का भी अपने बाप, बेटे और पति की जायदाद में हिस्सा है, यह बात केवल इस्लाम कहता है।
  • इस्लाम के अलावा कोई और धर्म यह बात कहता हो तो कोई लाकर दिखाए ?
  • मासिक धर्म के दिनों में औरत को बेडरूम से बाहर न निकाला जाए बल्कि वह उन दिनों में चूल्हा चौका कर सकती है और उसके हाथ का बना खाना पूरी तरह से शुद्ध है, यह बात केवल इस्लाम ही तो बताता है।
  • विवाह एक समझौता है और यह समझौता तलाक या पति की मौत के साथ ही खत्म हो जाता है और महिला  नए सिरे से विवाह करने के लिए आजाद है। वह किसी के साथ जन्म जन्मांतर तक के लिए बंध नहीं गई है। तलाक लेने का हक औरत भी रखती है। यह हक भी केवल इस्लाम ही देता है।
  • इस्लाम ही तो यह बताता है कि जाति के आधार पर एक आदमी दूसरे आदमी से ऊंचा नहीं है, अच्छे कर्म करने वाला ऊंचा है और बुरे काम करने वाला नीच है।
  • इस्लाम ही तो है जो कहता है कि सन्यास लेना वर्जित है। कोई इंसान ईश्वर की खोज में अपने मां-बाप और बीवी-बच्चों को छोडकर न भागे बल्कि उनकी सेवा करे, उसका यही कर्म ईश्वर को प्रसन्न करेगा।
  • केवल इस्लाम है जो कहता है कि लोक-परलोक में मुक्ति के लिए इंसान के अपने निजी कर्म ही आधार बनेंगे। परलोक में मुक्ति के लिए पुत्र के होने की कोई अनिवार्यता नहीं है।
  • इससे भी आगे वह यह कहता है कि जिसके बेटियां हैं या उसके बहनें हैं और वह उन्हें अच्छी तरह पालता है और उन्हें अच्छी तालीम देता है और लडकों को लडकियों पर प्रधानता नहीं देता तो वह अवश्य ही जन्नत में जाएगा।
  • केवल इस्लाम है जो नारी जाति को जन्मतः निर्दोष और पापमुक्त बताता है। 
  • इससे भी आगे बढकर वह कहता है सारी मानव जाति पैदाइशी तौर पर निर्दोष और पापमुक्त है।
इस्लाम के अलावा कौन है जो यह सब बातें बताता हो ?
कि इस्लाम को भी दूसरे दार्शनिक मतों की तरह का एक मत मान लिया जाए ?

इस्लाम व्यक्ति और समाज को केवल आध्यात्मिक शिक्षा ही नहीं देता बल्कि सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था भी देता है और ऐसा इस्लाम के अलावा कोई भी नहीं है। 
  • इस्लाम की उपासना पद्धति सरल और खर्चा रहित है और इसमें किसी तरह का अन्न-फल भी बर्बाद नहीं होता।
  • इस्लाम के अलावा कौन है जिसका धर्मग्रंथ आज भी वैसा ही सुरक्षित हो जैसा कि वह कभी शुरू में था ?
कोई एक भी नहीं।

जब कोई इस्लाम जैसा है ही नहीं तो फिर कैसे कह दिया जाए कि इस्लाम भी दूसरे बहुत से मतों की तरह का एक मत है।
इस्लाम सारी मानव जाति के लिए संपूर्ण मार्गदर्शन है, जो भी समाज इस पर चलता है, परलोक से पहले उसका कल्याण दुनिया में भी अवश्य होता है लेकिन इस पर चलने के लिए हौसला चाहिए।
इस्लाम सत्य है और इस सत्य को वही पाता है जो निष्पक्ष होकर विचार करता है।

Islam Is Not the Source of Terrorism, But Its Solution

Saturday, October 8, 2011

हत्या और आत्महत्या हराम है इस्लाम में

आम तौर पर लोग आत्महत्या तब करते हैं जब वे किसी समस्या से परेशान हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि उनके लिए अब मरने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है उस समस्या से बचने का . लेकिन हक़ीक़त यह है कि ऐसे लोग भी आत्महत्या करते हैं जो कि अपने जीवन से संतुष्ट होते हैं . गोवा में ऐसा ही वाकया पेश आया . 
उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उनकी 'फिलॉसफी' यह है कि जीवन उनकी मिल्कियत है और उसे जब चाहें वे समाप्त कर सकते हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि यह एक बिलकुल ग़लत सोच है . 
जितने भी लोग आत्महत्या करते हैं उसके पीछे हमेशा ग़लत सोच मौजूद मिलेगी.
सही सोच यह है कि अपने आप को पैदा करने वाले हम ख़ुद नहीं हैं और न ही हम अपने तन मन धन के मालिक हैं . हमारा और हमारे पास जो कुछ है, उस सब का मालिक वास्तव में वह है जिसने हमें पैदा किया है.हम तो उसके बन्दे और ग़ुलाम हैं , हमें उसकी योजना को फ़ॉलो करना है और तब तक जीना है जब तक कि वह ख़ुद हमें मौत नहीं दे देता और केवल वही काम करने हैं , जिन्हें करने का हुक्म उसने हमें दिया है.
इस्लाम की शिक्षा यही है .
किसी की जान लेना या अपनी जान देना या किसी भी जान को नाहक़ तकलीफ़ देना इस्लाम में सख्त हराम है.
किसी और फिलोसफी में ऐसा नहीं है . इस्लाम की जानकारी और इस्लाम में आस्था लोगों को आत्महत्या से रोक सकती है और यही वजह है कि दुनिया में जितने भी लोग आत्महत्या करते हैं  उनमें सबसे कम संख्या मुसलमानों के होती है और उन मरने वाले मुसलामानों में भी देनदार मुसलमान एक भी नहीं होता. 
दीं की सही समझ न सिर्फ आत्महत्या से रोकती बल्कि वह हत्या से भी रोकती है. ह्त्या हो या आत्महत्या , आदमी करता ही तब है जबकि उसकी सोच गलत हो जाती है और गलती कभी धर्म नहीं होती. 
गलती से बचो , धर्म पर चलो ताकि उद्धार पाओ.
देखिये गोवा में हुए हादसे की तफ़्सील :    
suicide.jpg
पणजी।। अब तक आपने जिंदगी से निराश लोगों द्वारा की गई खुदकुशी के बारे में सुना होगा, लेकिन गोवा में एक कपल ने इसलिए आत्महत्या कर ली कि वह जिंदगी से संतुष्ट हो चुका था। इस कपल को जिंदगी ने वह सब कुछ दिया था, जो उसे चाहिए था।
गोवा के पणजी शहर के मर्सेस इलाके में एक यंग कपल आनंद (39) और दीपा रंथीदेवन (36) ने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। पुलिस को इस घटना के बारे में तब पता चला, जब पड़ोसियों ने पुलिस में इसकी शिकायत की। पुलिस का कहना है कि इनके पास से जो सूइसाइड नोट मिला है, उसमें किसी को भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। 
एक पन्ने के सूइसाइड नोट में इस कपल ने लिखा है, 'हम दोनों ने एक साथ बहुत ही शानदार जीवन बिताया है। जीवन से हमें वे सारी खुशियां मिलीं, जिसकी लोग तम्मना रखते हैं। हमने पूरी दुनिया की यात्रा की और हम विश्व के कई शहरों में रहे। हमने इतना पैसा कमाया जितना कि हमने कभी सोचा भी नहीं था। हमने जिंदगी को खूब इंजॉय किया और हम अपने जीवन से संतुष्ट हो चुके हैं। हम इस फिलॉसफी में विश्वास रखते हैं कि हमारा जीवन सिर्फ हमारा है और इसे जीने या खत्म का अधिकार भी सिर्फ हमारा है।' 
इसमें आगे लिखा है कि कपल पर कोई देनदारी या लोन नहीं है। इसमें उनकी पूरी प्रॉपर्टी के बारे में जानकारी दी गई है। उन्होंने अपने अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपए भी छोड़ रखे हैं। सूइसाइड नोट में कपल ने लिखा है कि जो शख्स इस नोट को पाएगा वह हमारी अंतिम क्रिया करवा देगा। हमारी इच्छा है कि हमारा अंतिम संस्कार सरकारी श्मशान घाट पर किया जाए। पुलिस ने इस कपल के घर वालों और रिश्तेदारों को इस घटना की जानकारी दे दी है। 
पुलिस का मानना है कि कपल ने तीन दिन पहले आत्महत्या की होगी क्योंकि वह 3 अक्टूबर तक शहर के मशहूर फाइव स्टार रिजॉर्ट में रह रहे थे। वह वहां पर 2 महीने तक रहे।

Thursday, October 6, 2011

चुंबन पर रोक की मांग , इंसानी फितरत की आवाज़


इस्लाम की आवाज़ इंसानी फितरत से निकलती है . अब चाहे वह इंसान अरब का हो या हिंद का हो या फिर जर्मन का . अभी एक खबर पढ़ने में आई है ,

जर्मनी में ऑफिसों में चुंबन पर रोक की मांग

पश्चिमी देशों के समाज में एक दूसरे से मिलने पर चुंबन की प्रथा को तिरछी निगाहों से नहीं देखा जाता मगर जर्मनी में कामकाज की जगहों पर इसे रोकने की मांग उठी है। जर्मनी में शिष्टाचार और सामाजिक व्यवहार को लेकर सलाह देने वाले एक संगठन ने कामकाज की जगहों पर चुंबन पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है।

द निगे सोसाइटी नाम के इस संगठन ने कहा कि अपने सहयोगियों और व्यापारिक साझीदारों से मिलने पर उनके गाल पर चुंबन देने की प्रथा कई जर्मन लोगों को असहज कर रही है।

इस संगठन के प्रमुख हांस माइकल क्लाइन का कहना है कि उन्हें इस बारे में कई लोगों से ई-मेल मिले हैं। वह कामकाज की जगहों पर लोगों को पारंपरिक तौर पर हाथ ही मिलाने की सलाह दे रहे हैं।

उन्होंने बीबीसी को बताया, 'वैसे हम लोगों को कामकाज की जगह पर चुंबन लेने पर प्रतिबंध तो नहीं लगा सकते। मगर हमें उन लोगों को भी बचाना है जो ये नहीं चाहते कि उनका चुंबन लिया जाए।'

क्लाइन इसलिए लोगों को सलाह दे रहे हैं कि अगर वे बुरा न मानें तो अपनी डेस्क पर इस बारे में कागज पर एक संदेश लिखकर रख दें।

कामोत्तेजक पहलू : उन्होंने बताया कि इस साल उन्हें इस बारे में 50 ई-मेल मिले हैं जिसमें बताया गया है कि कैसे ऑफिस में उनसे मिलने पर सहयोगी ने उनके एक या दोनों गालों पर चुंबन लिया।

क्लाइन के मुताबिक, 'लोगों का कहना है कि ये जर्मन तौर तरीकों में शामिल नहीं है। ये इटली, फ्रांस या दक्षिणी अमरीका जैसी जगहों से आया है और एक खास सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है। लोग कहते हैं कि हमें ये पसंद नहीं है।'

संगठन ने इस बारे में एक बैठक की और सड़क पर तथा अपने सेमिनार में इस पर एक सर्वेक्षण भी कराया।

क्लाइन ने बताया, 'अधिकतर लोगों ने कहा कि उन्हें ये पसंद नहीं है। उन्हें लगता है कि इसका एक कामोत्तेजक पहलू है जिसमें एक तरह का शारीरिक संपर्क होता है और पुरुष इसके जरिए महिलाओं के नजदीक आ सकते हैं।'

उन्होंने बताया कि यूरोप में 60सेंटीमीटर का एक 'सामाजिक दूरी का क्षेत्र' है जिसका पालन होना चाहिए। निगे सोसाइटी जर्मन भाषा के एक शब्दांश पर आधारित नाम है जिसे अच्छे व्यवहार का गाइड कहा जाता है और ये पश्चिमी जर्मनी के डॉर्टमंड से 80 किलोमीटर दूर स्थित है।

खबरों के अनुसार ये संगठन पहले भी कुछ सलाह जारी कर चुका है जिसमें एक संबंध खत्म करने के लिए फोन पर टेक्स्ट संदेश भेजने के अलावा सर्दी में नाक बहने पर सार्वजनिक तौर पर उससे कैसे निबटें- ये भी शामिल था।
Source : http://blogkikhabren.blogspot.com/ 

Wednesday, October 5, 2011

वादा और अमानत



1. हे आस्तिको ! प्रतिज्ञाओं को पूरा करो। -कुरआन [5, 1]
2. …और अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन करो, निःसंदेह प्रतिज्ञा के विषय में जवाब तलब किया जाएगा।  -कुरआन [17, 34]
3. …और अल्लाह से जो प्रतिज्ञा करो उसे पूरा करो। -कुरआन [6,153]
4. और तुम अल्लाह के वचन को पूरा करो जब आपस में वचन कर लो और सौगंध को पक्का करने के बाद न तोड़ो और तुम अल्लाह को गवाह भी बना चुके हो, निःसंदेह अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। -कुरआन [16, 91]
5. निःसंदेह अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतें उनके हक़दारों को पहुंचा दो और जब लोगों में फ़ैसला करने लगो तो इंसाफ़ से फ़ैसला करो।  -कुरआन [4, 58]
6. और तुम लोग अल्लाह के वचन को थोड़े से माल के बदले मत बेच डालो (अर्थात लालच में पड़कर सत्य से विचलित न हुआ करो), निःसंदेह जो अल्लाह के यहां है वही तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है यदि समझना चाहो। -कुरआन [16, 95]
महत्वपूर्ण आदेश आज्ञाकारी और पूर्ण समर्पित लोगों को ही दिए जाते हैं। जो लोग समर्पित नहीं होते वे किसी को अपना मार्गदर्शक भी नहीं मानते और न ही वे अपने घमंड में उनकी दिखाई राह पर चलते हैं। इसीलिए यहां जो आदेश दिए गए हैं, उनका संबोधन ईमान वालों से है।
समाज की शांति के लिए यह ज़रूरी है कि समाज के लोग आपस में किए गए वादों को पूरा करें और जिस पर जिस किसी का भी हक़ वाजिब है, वह उसे अदा कर दे।  अगर समाज केसदस्य लालच में पड़कर ऐसा न करें और यह चलन आम हो जाए तो जिस फ़ायदे के लिए वे ऐसा करेंगे उससे बड़ा नुक्सान समाज को वे पहुंचाएंगे और आखि़रकार कुछ समय बादखुद भी वे उसी का शिकार बनेंगे। परलोक की यातना का कष्ट भी उन्हें झेलना पड़ेगा, जिसके सामने सारी दुनिया का फ़ायदा भी थोड़ा ही मालूम होगा। वादे,वचन और संधि केबारे में परलोक में पूछताछ ज़रूर होगी। यह ध्यान में रहे तो इंसान के दिल से लालच और उसके अमल से अन्याय घटता चला जाता है।स्वर्ग में दाखि़ले की बुनियादी शर्त है सच्चाई। जिसमें सच्चाई  का गुण है तो वह अपने वादों का भी पाबंद ज़रूर होगा। जो अल्लाह से किए गए वादों को पूरा करेगा, वह लोगों से किए गए वायदों को भी पूरा करेगा। वादों और प्रतिज्ञाओं का संबंध ईमान और सच्चाई से है और जिन लोगों में ये गुण होंगे, वही लोग स्वर्ग में जाने के अधिकारी हैं और जिस समाज में ऐसे लोगों की अधिकता होगी, वह समाज दुनिया में भी स्वर्ग की शांति का आनंद पाएगा।
अमानत को लौटाना भी एक प्रकार से वायदे का ही पूरा करना है। यह जान और दुनिया का सामान जो कुछ भी है, कोई इंसान इसका मालिक नहीं है बल्कि इन सबका मालिक एक अल्लाह है और ये सभी चीज़ें इंसान के पास अमानत के तौर पर हैं। वह न अपनी जान दे सकता है और न ही किसी की जान अन्यायपूर्वक ले सकता है। दुनिया की चीज़ों को भी उसे वैसे ही बरतना होगा जैसे कि उसे हुक्म दिया गया है। दुनिया के सारे कष्टों और आतंकवाद को रोकने के लिए बस यही काफ़ी है।
अरबी में ‘अमानत‘ शब्द का अर्थ बहुत व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता है।
ज़िम्मेदारियों को पूरा करना, नैतिक मूल्यों को निभाना, दूसरों के अधिकार उन्हें सौंपना और सलाह के मौक़ों पर सद्भावना सहित सलाह देना भी अमानत के दायरे में हीआता है। अमान��� के बारे में आखि़रत मे सवाल का ख़याल ही उसके सही इस्तेमाल गारंटी है। कुरआन यही ज्ञान देता है।
वास्तव में सिर्फ़ इस दुनिया का बनाने वाला ही बता सकता है कि इंसान के साथ उसकी मौत के बाद क्या मामला पेश आने वाला है ?
और वे कौन से काम हैं जो उसे मौत के बाद फ़ायदा देंगे ?
वही मालिक बता सकता है इंसान को दुनिया में कैसे रहना चाहिए ?
और मानव का धर्म वास्तव में क्या है ?
कुरआन उसी मालिक की वाणी है जो कि मार्ग दिखाने का वास्तविक अधिकारी है क्योंकि मार्ग, जीवन और सत्य, हर चीज़ को उसी ने बनाया है।